अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं,
रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं.
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब,
सोचते रहते हैं, किस राहगुज़र के हम हैं |
Sunday, December 5, 2010
Faiz
kon kehta he k mar jaonga main dariya hon samender main utter jaonga.
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